Cultivation of milky mushroom
दूधिया मशरूम
वैज्ञानिक रूप से Calocybe indica के रूप में जाना जाता है , दूधिया मशरूम भारत में वन वातावरण में बढ़ता है। जहां तक हम बता सकते हैं, प्रजाति को पहली बार 1970 के मध्य में पुआल सब्सट्रेट का उपयोग किया गया था, बहुत हद तक सीप मशरूम की तरह। वे 95 ° F के आसपास के क्षेत्र में बहुत गर्म तापमान पसंद करते हैं। ऊष्मायन के बाद, एक आवरण परत जोड़ा जाता है। जो उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय जलवायु प्रकारों के लिए उपयुक्त हैं। कम लागत वाली किस्मों में से एक, मिल्की मशरूम काफी बड़े होते हैं और अन्य स्वादिष्ट मशरूम की तुलना में अधिक फायदेमंद होते हैं।मशरूम धूल जैसे कणों से बढ़ते हैं जिन्हें बीजाणु कहा जाता है, जो माइसेलियम नामक घने सफ़ेद टंगले धागे के द्रव्यमान में विकसित होते हैं। मशरूम स्पॉन अनिवार्य रूप से मशरूम माइसेलिया के साथ चूरा है। मायसेलियम से एक ऊपर की ओर बढ़ता हुआ छतरी के आकार का फल निकलता है, जिसे मशरूम कहा जाता है।
आवश्यक चीजें:दूधिया मशरूम
दूधिया मशरूम स्पॉनसब्सट्रेट: धान या चावल के भूसे
आवरण मिश्रण: निष्फल मिट्टी
प्लास्टिक बैग (लगभग 60 सेमी x 30 सेमी)
स्टरलाइज़ सब्सट्रेट (स्ट्रॉ):
पुआल को लंबाई में लगभग 1 से 3 इंच के छोटे टुकड़ों में काट लें। इसे लगभग एक घंटे के लिए पानी में उबालें। पानी को तब तक डुबोएं जब तक कि वह भूसे से न गिर जाए।उत्पादन की विधि:
इस विधि में मशरुम उत्पादन करने के लिए सर्वप्रथम कुछ रसायनों की मदद से गेहूं के भूसे से जीवाणु इत्यादि को नष्ट किया जाता है ताकि उस भूसे में आसानी से मशरुम उगाई जा सकें | अर्थात सर्वप्रथम भूसे का शुद्दिकरण किया जाता है |
भूसे का शुद्धिकरण:
भूसे का शुद्धिकरण करने के लिए पानी की एक हादी यानिकी सीमेंट का एक चैम्बर बनाया जाता है और उसके निचले हिस्से में अनावश्यक पानी को बाहर निकालने के लिए एक छेद या नल लगाया जाता है | जिसमे लगभग 1500 लीटर पानी में 1.5 लीटर FORMALIN और 150 ग्राम बावेस्टिन नामक रसायन मिलाये जाते है | और फिर उसे पैरों से अच्छी तरह हिलाया जाता है तो पानी का रंग सफ़ेद होने लगता है हिलाने की प्रक्रिया करते वक्त इन रसायनों की गंध नाक में जा सकती है | अब इसके बाद इस पानी में लगभग 1.5 क्विंटल गेहूं का भूसा डाल दिया जाता है | उसके बाद इस भूसे को पानी के साथ पैरों से कुचल दिया जाता है ताकि वह पानी में अच्छी तरह मिल जाय | जब भूसा पानी के साथ अच्छी तरह मिल जाता है तो एक प्लास्टिक के तिरपाल से इस भूसे को ढक लिया जाता है यह प्रक्रिया इसलिए की जाती है ताकि जो भूसा है वह हवा के संपर्क में न आये | हवा के सम्पर्क में आने से रसायनों का असर बेअसर हो सकता है और उस भूसे में उपस्थित कीट, पतंगे मशरूम पैदा करने यानिकी MUSHROOM FARMING की राह में रोड़े अटका सकते हैं |भूसे को सूखाना:
गर्मियों में MUSHROOM FARMING करने के लिए अब उद्यमी का अगला कदम भूसे को सुखाने का होना चाहिए | इसलिए एक दिन तक उस भूसे को चैम्बर में पड़ा देने के बाद अगले दिन उस भूसे को चैम्बर से निकाल लिया जाता है और किसी साफ़ जगह पर सुखाने के लिए बिछा दिया जाता है और हर एक दो घंटे में इसको पलटा जाता है, यह इसलिए किया जाता है ताकि भूसे में उपलब्ध FORMALIN भूसे से उड़ जाय अर्थात भूसे में रसायनों का कोई अंश बाकी न रहे और भूसे में उपस्थित नमी को भी 50% तक कम करने, एवं भूसे को ठंडा करने के लिए यह प्रक्रिया की जाती है | और इस प्रक्रिया का समयकाल लगभग 20 घंटे से लेकर 24 घंटे होता है |SPAWN की बिजाई करना:
MILKY MUSHROOM FARMING के लिए अब अगला कदम बिजाई अर्थात भूसे में MUSHROOM SPAWN को मिलाने का होता है | यह प्रक्रिया यदि सुबह सुबह अर्थात मोर्निंग में जब मौसम ठंडा होता है तब की जाय तो अच्छा रहता है |MILKY MUSHROOM की बिजाई करना: MILKY MUSHROOM की बिजाई करने के लिए सर्वप्रथम प्लास्टिक के बैग ले लिए जाते हैं और इन्हें नीचे दोनों कोनों से काट लिया जाता है वह इसलिए ताकि भूसे में यदि पानी के अवशेष बचे होंगे तो वे बैग से बाहर निकल जाएँ | उसके बाद MUSHROOM SPAWN को पन्नी में ही हलके हाथों से दबाया जाता है या मुट्ठी बांधकर उस पन्नी में जिसमे MUSHROOM SPAWN हों हलकी हलकी चोट की जाती है ताकि दाने अलग अलग हो जाएँ | बिजाई के समय इस बात का विशेष ध्यान देना पड़ता है की यदि MUSHROOM SPAWN के दाने आपस में चिपके हुए हों तो उन्हें हाथों से मलकर या रगड़कर अलग अलग करना जरुरी है ताकि SPAWN अच्छी तरह से भूसे में मिल सके | अब अगला कदम SUMMER MUSHROOM FARMING के लिए प्लास्टिक बैग हाथ में लेने का है जहाँ तक प्लास्टिक बैग के साइज़ का सवाल है 16×18 इंच के बैग लिए जा सकते हैं | अब यह बात ध्यान में रखकर इस बैग में भूसा भरना होता है की तीन लेयर में यह ऊपर तक भर जाय अर्थात केवल बैग को बाँधने की जगह ही ऊपर बचे, क्योंकि इसमें MUSHROOM SPAWN की बिजाई तीन लेयर में करनी होती है | इसलिए बैग में भूसा डालने के बाद फिर लगभग आधी मुट्ठी MUSHROOM SPAWN डाल दिए जाते हैं फिर भूसा डालने के बाद फिर आधी मुट्ठी SPAWN डाल दिए जाते हैं और फिर से एक बार यह प्रक्रिया करके प्लास्टिक के बैग को दबाकर बाँध दिया रबर बैंड चढ़ाकर बाँध दिया जाता है, उसके बाद एक पैन की मदद से इस पन्नी पर लगभग 10 छेद किये जा सकते हैं ताकि बाहर की ताज़ी हवा का आवागमन होता रहे | इसी कदम के साथ MILKY MUSHROOM की बिजाई की प्रक्रिया का समापन हो जाता है |
माध्यम तैयार करना:
एक बार नम पुआल को कमरे के तापमान तक ठंडा कर दिया जाता है, इसे प्लास्टिक की थैली के अंदर सघन रूप से ढेर कर दें, लगभग 6-10 इंच ऊंचा। अब भूसे के ऊपर मुट्ठी भर दूधिया मशरूम फैलाएं। बैग को ऊपर से बाँधें और उसमें कुछ छेद डालें जिससे कि सांस को सांस में लिया जा सके।मशरूम बीजाणु
ऊष्मायन अवधि:
बैग को सीधे धूप से दूर ठंडी और अंधेरी जगह पर रखें। नमी बनाए रखने के लिए कभी-कभी प्लास्टिक की थैली के ऊपर थोड़ा पानी स्प्रे करें। 15 से 20 दिनों के बाद, जब स्पॉन एक सफेद प्यारे सिल-वेब फिल्म में विकसित हुआ, जिसे मायसेलियम कहा जाता है, यह आवरण के लिए समय है।आवरण:
बैग खोलें और उसके ऊपर निष्फल मिट्टी की एक इंच मोटी परत फैलाएं, जो नमी को संरक्षित करता है और बढ़ते मशरूम को समर्थन प्रदान करता है। मशरूम की फलने की शुरुआत के लिए बैग को एक शानदार जगह पर रखें।दूधिया मशरूम 2
लगभग 10 दिनों में, छोटे मशरूम-सिर मिट्टी से बाहर निकलने लगते हैं और लगभग एक सप्ताह में अपने पूर्ण आकार में हो जाते हैं। जब मशरूम-कैप्स अपने तने से पूरी तरह से अलग हो जाते हैं, तो वे कटाई के लिए तैयार होते हैं। जब एक रेफ्रिजरेटर में संग्रहीत किया जाता है, तो दूधिया मशरूम 21 दिनों तक ताजा रह सकते हैं। घर के बने मशरूम के ताजा स्वाद का आनंद लें!Grow Milk or Dudhia mushroom in the summer season to earn good returns
दूधिया मशरूम एक स्वाटिष्ट प्रोटीनयुक्त तथा कम कैलोरी प्रदान करने वाला खाद्य पदार्थ है। इसमे पायी जाने वाली प्रोटीन में आवश्यक अमीनो अम्ल प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो कि वृ़ध्दि और विकास के लिए अत्यन्त उपयोगी है ताजे मशरुम में पाये जाने वाला प्रोटीन, दूघ के प्रोटीन के बराबर होता है व अत्यधिक सुपाच्य होता है। इसके साथ ही यह विटामिन व खनिज लवण का अच्छा स्त्रोत है।
मशरुम में वसा कम व प्रोटीन ज्यादा होता है। अतः यह ह्रदय रोगियो के लिए उपयोगी है। इसमे स्टार्च नहीं होता यह डायबिटीज के मरीजो को फायदा करता है। यह वैक्टीरिया से लड़ले की क्षमता रखता है। तथा ट्यूमर के वृ़ध्दि को रोकता है। चावल व गेहूँ अपेक्षा मशरूम से शरीर को कम कैलोरी प्राप्त होती है, इसलिए यह मोटापा नहीं बढ़ाता है। इसमें शर्करा एवं स्टार्च कम होता है इस कारण इसे ‘डिलाइट आॅफ डाइबेटिक‘ कहा जाता है।
इसमें कोलेस्ट्रोल बिल्कुल नहीं होता है अतः यह दिल के मरीज के लिए काफी अच्छा होता है। मशरूम मे उपस्थित लौह तत्व पूरी तरह शरीर में उपलब्ध होने की अवस्था में होते हैं जिससे यह रक्ताल्पता (एनीमिया) में बहुत फायदेमंद होते है। इसमें सोडियम व पोटाशियम का अनुपात अधिक होने के कारण उच्च रक्तचाप को सामान्य करता है।
इसमें फासफोरस भी पाया जाता है। एक आर्दश भोजन मे ताजा मशरूम (227 ग्राम) खाने से लगभग 70 किलो कैलोरी उर्जा मिलती है। गर्मी के मौसम मेें उगाये जाने वाले मशरूम में दूधिया मशरूम (कैलोसाइबी इंडिका) महत्वपूर्ण है। इसकी खेती अधिक तापमान मेें आसानी से की जा सकती है।
दूधिया मशरूम के कवक जाल फैलाव के लिए 25-35 डिग्री सेल्सियस तथा नमी 80-90 प्रतिशत होनी चाहिए। ऊँचे तापमान (38-40) पर भी यह अच्छा पैदावार देता है । वैज्ञानिक तरीका अपनाकर किसान गर्मी के मौसम मे भी आसानी से इसकी खेती करके अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
मशरूम उगाने के माध्यम का चुनाव एवं उपचार:
दूधिया मशरूम को विभिन्न कृषि फसलों से प्राप्त अवशेषों जैस भूसा, पुआल, फरशीबीन के सूखे डंठल व गन्ना की खोई आदि पर आसानी से उगााया जा सकता है। माध्यम नया, सूखा एवं बरसात मे भींगा न हो। इस मशरूम की खेती के लिए भूसा या पुआल का अधिकतर इस्तेमाल किया जाता है।
माध्यम को हानिकारक सूक्ष्मजीवियों से मुक्त करने तथा दूधिया मशरूम की वृद्धि हेतु उसे उपयुक्त बनाने के लिये, निम्नलिखित में से किसी एक विधि से उपचारित करके ही इस्तेमाल किया जाता है।
गर्म पानी द्वारा उपचार:
इस विधि के अनुसार गेहूँ का भूसा या धान के पुलाव की कुट्टी को काट कर एवं जूट या कपडे़ की छोटी थैलियों में भरकर पानी मं अच्छी प्रकार से कम से कम 12 से 16 घंटे तक डुबोकर रखते हैं। ताकि भूसा या पुआल अच्छी तरह से पानी सोख लें। इसके पश्चात् इस गीले भूसे से भरी थैलियों को उबलते हुए गर्म पानी में 30-40 मिनट तक डुबोकर रखते हैं।
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि पानी का तापमान 40 मिनट तक 80-90 सेल्सियस तक बना रहना चाहिए। भूसा डालने से पहले फर्श को धो कर उस पर 2 प्रतिशत फार्मेलीन के घोल का छिडकाव करें। इस प्रकार से उपचारित माध्यम बीजाई के लिये तैयार करें।
रासायनिक उपचार:
गर्म पानी उपचार विधि को बडे़ स्तर पर पर अपनाने में अधिक खर्च आता है अतः विकल्प के रूप में रासायनिक विधि को अपनाया जा सकता जिसका तरीका निम्नलिखित है।
किसी सिमेंट के नाद या ड्रम में 90 लीटर पानी लें तथा उसमे 10 किलोग्राम भूसा या पुआल (माध्यम) भिगो दें।
एक बाल्टी मे 10 लीटर पानी लें तथा उसमें 10 ग्राम बाविस्टीन व 5 मि0ली0 फार्मेलीन मिलायें। इस घोल को ड्रम में भिगोये गये माध्यम पर डालें तथा ड्रम को पाॅलिथीन से ढ़ॅककर उस पर वजन रख दें।
12-16 घंटे बाद ड्रम से माध्यम को बाहर निकाल कर साफ फर्श पर फेला दे। ताकि अतिरिक्त पानी निकल जाये। इस प्रकार प्राप्त गीला माध्यम बीजाई के लिये तैयार है।
स्पान (Spawn) बीजाई
उपर बताई गई किसी एक विधि से माध्यम को उपचारित कर उसमें 4 – 5 प्रतिशत (गीले माध्यम के वजन के अनुसार) की दर से बीज मिलायें यानि एक किलोगा्रम गीले माध्यम मे 40-50 ग्राम बीज। सतह विधि से ही बीजाई करना उत्तम रहता है ।सतह में बीजाई करने के लिए पहले 4 – 5 छिद्रयुक्त पाॅलीप्रोइलिन (पी.पी.) के बैग , जिसका आकार 14-16 से0मी0 चैडा तथा 20 से0मी0 ऊँचा हो, में एक परत माध्यम की बिछाये फिर उसके उपर बीज बिखेर दें। उसके ऊपर फिर से माध्यम की परत डालें तथा फिर बीज डालें। इस प्रकार 2-3 सतह में बीजाई की जा सकती है।
बैग मे करीब 2-3 किलो ग्राम गीले (उपचारित) भरा जाता। छिटकावाॅ विधि से भी बीजाई की जा सकती है। बीजित बैगों को एक अंधेरे कमरे में रख देते हैं तथा लगभग 2-3 सप्ताह तक 25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा 80-90 प्रतिशत नमी बनाये रखें।
केसिंग मिश्रण बनाना व केसिंग परत बिछाना
बीजाई किये गयें बैगों में 2-3 सप्ताह बाद कवक जाल भूसे में फैल जाता है तथा भूसे का रंग सफेद दिखाई देने लगता है ऐसी अवस्था में केसिंग परत चढ़ाने के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
केसिंग मिश्रण, केसिंग करने के 8-10 दिन पहले तैयार करते हैं। केसिंग मिश्रण तैयार करने के लिए ¾ भाग दोमट मिट्टी व सड़ी गोबर खाद बराबर मात्रा में तथा ¼ भाग बालू लेते हैं। अब इस मिश्रण में वजन का 10 प्रतिशत चाक पाउडर मिलाते हैं जिससे मिश्रण की अम्लीयता बदल कर मृदा-क्षारीय (8-8.5 पी.एच.) तक हो जाये।
मिश्रण को 4 प्रतिशत फार्मेलिन व 0.1 प्रतिशत बाविस्टन के घोल से गीला कर ऊपर से पालीथीन शीट से ढक दें।
केसिगं करने के 24 घंटे पूर्व केसिंग मिश्रण से पालीथीन हटायें तथा मिश्रण को बेलचे से उलट-पलट दें ताकि फार्मेलीन की गंध निकल जाये। मिश्रण को बोरे में भरकर भाप द्वारा एक घंटा तक निर्जमीकरण (स्ट्रलाईज) करें।
केसिंग के उपरान्त रखरखाव:
केसिंग प्रक्रिया पूर्ण करने के पश्चात मशरूम की अधिक देखभाल करनी पड़ती है। प्रतिदिन थैलों का नियमित निरीक्षण करें। थैलों में नमी का जायजा लेते रहें तथा आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करना चाहिए। इस चरण में नमी की अधिक आवश्यकता होती है। अतः पहले से कुछ अधिक , 85-90 प्रतिशत , नमी बनाये रखना चाहिए।तापमान व नमी के अतिरिक्त, मशरूम उत्पादन के लिए हवा का आदान-प्रदान होना आवश्यक होता है। इसके लिए आवश्यक है कि उत्पादन कक्ष मे रेाशनदान, खिड़की व दरवाजे द्वारा आसानी से हवा अन्दर आ सके और अंदर की हवा बारह जा सके। सुबह-शाम कुछ देर के लिए दरवाजे व खिडकियां खोल देना चाहिए।
केसिंग मिट्टी में कवक जाल फैलने के बाद थैलों के उपर 3-5 दिनों के भीतर मशरूम कलिकायें निकलना प्रारम्भ हो जाती हैं। और लगभग एक सप्ताह मे पूर्ण मशरूम का रूप ले लेती हैं। इस मशरूम की बढ़वार के लिये कलिकायं को नीले रंग के प्रकाश के आवश्यकता होती है। जिसे नीले पोलीहाउस के अन्दर उगा कर या नीले ट्युबलाइट के प्रयोग से प्राप्त किया जा सकता है।
दूधिया मशरूम तुड़ाई व उपज
मशरूम की छत्ता जब 5-7 से0मी0 व्यास का हो जाये तो इसे परिपक्व समझना चाहिए। और घुमाकर तोड़ लेना चाहिए। तने के निचले भाग को जिसमें मिट्टी लगी होती है, हटा दिया जाता है और मशरूम को पलीथीन या पी0 पी0 बैग जिसमें छेद हो, में पैक कर लिया जाता है।इस मशरूम की जैव दक्षता 100 प्रतिशत के करीब होती है यानि एक किलोग्राम सूखे भूसे/पुआल से 1 किलो ग्राम ताजा मशरूम प्राप्त होती है। अच्छी पैदावार होने पर पैदावार की लागत करीब रूपये प्रति किलोग्राम पड़ती है।
उपरोक्त तकनीक अपनाकर मशरूम उत्पादक ग्रीष्म व वर्षा ऋतु में दूधिया मशरूम का उत्पादन कर काफी अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं तथा जाड़े में ढींगरी/बटन मशरूम उत्पादित कर, पूरे वर्ष आमदनी प्राप्त कर सकते हैं ।
ati sundar
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