गैनोडरमा मशरूम (Guanoderma mushrooms)
गैनोडरमा मशरूम (Guanoderma mushrooms)
यह एक सख्त एवं वर्षा ऋतू में सूखे या जीवित वृक्षों की जड़ो के पास उगती है। इसका रंग गहरा लाल, भूरा एवं स्लेटी होता है। प्रकृति में इसकी कई प्रजातियां पाई जाती है। ताजा मशरूम गूदेदार होती है एवं सूखने पर यह कड़क हो जाती है।
उत्पादन
इसके औषधीय महत्व को देखते हुए पूर्वी देशों में इसके उत्पादन की विधि विकसित की गई है। परन्तु जलवायु की विभिन्नता एवं विशेष प्रकार के कृषि अवशेषों की उपलब्धता के कारण इसके उत्पादन का तरीका कुछ भिन्न है
माध्यम तैयार करना
इस mushroom के लिए गेहूं का भूसा तथा लकड़ी का बुरादा 1:3 लिए जाते है। दोनों को करीब 20 घंटे तक अलग-अलग गलाने के पश्चात् इसे बाहर निकाल कर अतिरिक्त पानी को निथार कर दोनों को बराबर मात्रा 75% के लगभग होनी चाहिए।
इसके बाद दोहरी की हुई थैलियों में ऊपर की और प्लास्टिक की वलय एवं डाट लगा देते है। इसके ऊपर कागज तथा बर बेंड लगाकर इसे ऑटोक्लेव में 15 पोंड डाब पर डेढ़ से डप घंटे के लिए निर्जीवीकरण करते है। इसके बाद इसे ठंडा होने के लिए रख देते है।
बीज तैयार करना
उपरोक्त विधि से तैयार मिश्रण में 3% गीले मिश्रण के हिसाब से बीजाई करते है, फिर इसे 30-35 डिग्री से. तापमान पर बीज बढ़वार के लिए रख देते है। लगभग 5 सप्ताह में बीज बढ़वार पूर्ण हो जाती है।
मशरूम तुड़ाई
काट लगी हुई थैलियों से कुछ दिनों के बाद मशरूम निकलना प्रारम्भ हो जाती है, बढ़वार धीरे-धीरे होती है। करीब 3-5 सप्ताह में यह परिपक्व हो जाती है। संग्रह करने के लिए मशरूम को घुमाकर तोड़ लिया जाता है। इसे सुखाकर इसका पाउडर बनाकर लम्बे समय तक संग्रहित किया जा सकता है।
बाजार भाव
अभी राजस्थान में इस मशरूम को बाजार में नहीं बेचा जाता है लेकिन कुछ व्यवसायिक उत्पाद जैसे कैप्सूल (डी.एक्स.एन.) एवं पाउडर बाजार में रूपये 1100 पर 100 कैप्सूल की दर से एवं रूपये 1150(50 ग्राम पाउडर) बाजार में विक्रय के लिए उपलब्ध है।
भारत सरकार की संस्था आई.सी.ए.आर. द्वारा प्राप्त निर्देशों के अनुसार इस मशरूम का उत्पादन अत्यंत नियंत्रित रूप से करना होगा। उत्पादन के उपरांत बचे अवशेषों को पेड़ों से दूर गहरे गद्दे में डालना चाहिए। यह पेड़ों को नुकसान पैदा करती है।
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