History of mushrooms in hindi
वनस्पति विज्ञान के अध्ययनोंपरान्त यह ज्ञात हुआ कि क्रमिक विकास की प्रक्रिया में सबसे पहले शैवाल (Alage) बना और उसके पश्चात कवक (Fungi) बना ।
मशरूम की प्रजातियां जानने के लिए MushroomOne पर जायें
कवक संबंधी अध्ययनों के विज्ञान को माइकोलॉजी (Mycology) कहते हैं। माइकोलॉजी में कवक से सम्बन्धित पौधों के सभी पहलुओं पर अध्ययन किया जाता है। ग्रीक के पौराणिक धर्मग्रंथों में (Myke) शब्द का अर्थ टोपी होता है।
और इसी के अनुसार कवक के बङे समूहों जिनमें मशरूम भी शामिल हैं ये सभी एक डंठल पर गुंबद जैसी आकृति बनी होती है।
इसी के अनुसार विज्ञान की इस विधा को Mycology कहा गया। ऋगुवेद व अन्य सनातन वैदिक धर्मग्रंथों मे सोमरस का वर्णन किया गया है, यह सोमरस एक मशरूम जिसे एमेनिटा मस्केरिया (Amanita Muscaria) कहते हैं इसके रस से बनाया जाता था।
यह सोमरस पवित्र माना जाता था और आर्य लोग इसे पूजा के समय यज्ञ व ईश्वर को अर्पित करते थे। सोमरस बहुत अधिक स्फूर्ति प्रदान करने वाला पवित्र पेय था।
कई देशों ने मशरूम को डाक टिकटों में भी स्थान दिया।
प्रागैतिहासिक काल के गुफाओं के भित्तिचित्रों में मशरूम देखा जा सकता है। मैसोपोटामिया के देवी देवताओं को अर्पित करने वाले वस्तुओं में मशरूम को आदरणीय स्थान प्राप्त था।
जब रोम साम्राज्य अपनी पराकाष्ठा पर था, तब एक इतिहासकार पिनि द्वारा लिखित (प्राकृतिक विज्ञान का इतिहास) में लिखा है कि दो मशरूम जिसका नाम एमेनिटा सिसेरिया व बोलिटस एल्यूडीज है इतनी स्वादिष्ट मानी जाती थी कि इसे बहुमूल्य धातुओं की तस्तरीयों में परोसा जाता था।
यूरोप के लगभग सभी भागों में समाज के उच्चवर्गीय लोगों ने मशरूम को विलासिता की वस्तुओं में शामिल कर लिया था। मध्ययुग में मशरूम एक उच्च खाद्य पदार्थों में गिना जाता था।
निम्न वर्ग का इसे खाना प्रतिबंधित कर दिया गया था।
फ्रांस के महान सम्राट लूई चौदहवें(1638ई-1715ई) के शासन काल में पहली बार मशरूम की खेती के बारे में लिखना शुरू हुआ। वहीं पर इसका पहला वैज्ञानिक साहित्य (1707ई) में (Turnifort) द्वारा प्रकाशित कराया गया। उन्हे पहले पहल मशरूम संवर्धन के बारे में तब ज्ञात हुआ जब बागों में धान पुआल सङाकर खाद बनाया जा रहा था। खाद बनते समय उसमे ढेरों मशरूम उग जाते हैं उसको देखकर फ्रांस के मशरूम वैज्ञानिक मशरूम उगाने के उन्नत तरीकों का विकास किया, जो कि आज भी उपयोग में लाया जा रहा है।
अंग्रेजो ने शीघ्र ही उनसे मशरूम उगाने की बिधि सीख लिया। 19 वीं शताब्दी के अंत तक दो फ्रांसिसी मशरूम वैज्ञानिक मेटरोकोट व कॉन्टेन्टाइन(1894 ई) में शोध कार्य करके मशरूम संवर्धन में आने वाली बाधाओं को दूर किया। उन्होंने कई रोगों जैसे – ला मोल माइक व गोना पेरनी सियोसध्द नामक रोग पर नियंत्रित करने के लिए गंधक के धुंए का प्रयोग किया। उन्होंने ही सबसे पहले मशरूम के बीजाणुओं के अण्डे बनाये जिससे वैज्ञानिक तरीके से मशरूम की खेती को बढ़ावा मिला।
सन् 1902ई में मिस फरगूसन ऑफ क्रोन ने विस्तार पूर्वक समझाया। सन् 1905ई में अमेरिकी वैज्ञानिक बी. एम. दुग्गङ ने कोशिका प्रजनन विधि (Pure cell suspension culture) का आविष्कार किया जिससे मशरूम जगत को एक नया आयाम मिला।
मशरूम पैदा करने वाले इच्छुकों के बीच यह आविष्कार खलबली मचा दिया क्योंकि इससे किसी भी विशेष प्रजाति के मशरूम के विशुद्ध अण्डे आसानी से तैयार किये जा सकते थे। इस कार्य ने विकसित राष्ट्रों में मशरूम उत्पादन को एक उद्योग का दर्जा दिला दिया।
सन् 1918ई में अमेरिका के lambert ने कॉच के बोतलों में मशरूम के कल्चर से शुद्ध स्पान तैयार किया, इस विधि में पहले प्रयोगशाला में अण्डे विकसित किया गया बाद में उसे घोङो की लीद से बनाए गए एवं निष्किट किए हुए मिडियम को कॉच की पात्रों में भरकर उसमें अण्डे विकसित कर स्पान बनाया गया, इस तरह पहली बार Lambert ने स्पान बेचना शुरू कर दिया।
बीसवीं सदी के चौथे दशक में मशरूम उगाने के लिए उपयुक्त एक हरित पौधशाला (Green House ) का निर्माण किया गया। जिसमें आर्द्रता, तापमान व उचित वायुगमन का कृत्रिम रूप से किया गया इस तरह मशरूम की व्यासायिक खेती को अधिक बढ़ावा मिला।
फ्रांसीसी किसान मशरूम के कम्पोस्ट को दानेदार बनाने के लिए जिप्सम का उपयोग बखूबी जानते थे।
पिगर 1936ई में कम्पोस्ट बनाने मे जिप्सम को अतिआवश्यक माना क्योंकि जिप्सम कवकजाल को तेजी से वृद्धि के लिए उत्तेजित करने में सहायक होता है।
सिन्डेन 1932ई में डिम्बन बनाने में कणों का उपयोग बताया और इस तकनीक को पेटेंट भी करवा लिया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका के कृषि विभाग ने यह प्रचारित किया कि मशरूम पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य है।
सदी के मध्य तक ईग्लैण्ड और आयरलैंड में मशरूम उत्पादकों का संघ बन गया था। और इसने मशरूम में आने वाले समस्याओं के समाधान हेतु शोधकार्य करने के लिए “नेशनल फार्मर्स यूनियन "की एक विशिष्ट शाखा स्थापित की गई। उसके बाद प्रकाशकों का एक मिडलैंड ग्रुप (Midland Group) स्थापित किया गया जिसने मशरूम कृषि को बढ़ावा देने के लिए उच्च कोटि के पुस्तकों और पत्रिकाओं का प्रकाशन किया।
उसके बाद के वर्षों में पॉलीथीन के थैलियों में मशरूम उगाने की बिधि का आविष्कार हुआ जिससे घरेलू स्तर पर मशरूम उत्पादकों के लिए मशरूम उगाना काफी आसान हो गया।
बेनलेट ने मशरूम में होने वाले बिमारियों के बारे में बिस्तर से समझाया और रोगों के रोकथाम की जानकारी दी।
इसके साथ ही मशरूम संवर्धन का बिस्तार तेजी से हो रहा है।
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कवक संबंधी अध्ययनों के विज्ञान को माइकोलॉजी (Mycology) कहते हैं। माइकोलॉजी में कवक से सम्बन्धित पौधों के सभी पहलुओं पर अध्ययन किया जाता है। ग्रीक के पौराणिक धर्मग्रंथों में (Myke) शब्द का अर्थ टोपी होता है।
और इसी के अनुसार कवक के बङे समूहों जिनमें मशरूम भी शामिल हैं ये सभी एक डंठल पर गुंबद जैसी आकृति बनी होती है।
इसी के अनुसार विज्ञान की इस विधा को Mycology कहा गया। ऋगुवेद व अन्य सनातन वैदिक धर्मग्रंथों मे सोमरस का वर्णन किया गया है, यह सोमरस एक मशरूम जिसे एमेनिटा मस्केरिया (Amanita Muscaria) कहते हैं इसके रस से बनाया जाता था।
यह सोमरस पवित्र माना जाता था और आर्य लोग इसे पूजा के समय यज्ञ व ईश्वर को अर्पित करते थे। सोमरस बहुत अधिक स्फूर्ति प्रदान करने वाला पवित्र पेय था।
कई देशों ने मशरूम को डाक टिकटों में भी स्थान दिया।
प्रागैतिहासिक काल के गुफाओं के भित्तिचित्रों में मशरूम देखा जा सकता है। मैसोपोटामिया के देवी देवताओं को अर्पित करने वाले वस्तुओं में मशरूम को आदरणीय स्थान प्राप्त था।
जब रोम साम्राज्य अपनी पराकाष्ठा पर था, तब एक इतिहासकार पिनि द्वारा लिखित (प्राकृतिक विज्ञान का इतिहास) में लिखा है कि दो मशरूम जिसका नाम एमेनिटा सिसेरिया व बोलिटस एल्यूडीज है इतनी स्वादिष्ट मानी जाती थी कि इसे बहुमूल्य धातुओं की तस्तरीयों में परोसा जाता था।
यूरोप के लगभग सभी भागों में समाज के उच्चवर्गीय लोगों ने मशरूम को विलासिता की वस्तुओं में शामिल कर लिया था। मध्ययुग में मशरूम एक उच्च खाद्य पदार्थों में गिना जाता था।
निम्न वर्ग का इसे खाना प्रतिबंधित कर दिया गया था।
फ्रांस के महान सम्राट लूई चौदहवें(1638ई-1715ई) के शासन काल में पहली बार मशरूम की खेती के बारे में लिखना शुरू हुआ। वहीं पर इसका पहला वैज्ञानिक साहित्य (1707ई) में (Turnifort) द्वारा प्रकाशित कराया गया। उन्हे पहले पहल मशरूम संवर्धन के बारे में तब ज्ञात हुआ जब बागों में धान पुआल सङाकर खाद बनाया जा रहा था। खाद बनते समय उसमे ढेरों मशरूम उग जाते हैं उसको देखकर फ्रांस के मशरूम वैज्ञानिक मशरूम उगाने के उन्नत तरीकों का विकास किया, जो कि आज भी उपयोग में लाया जा रहा है।
अंग्रेजो ने शीघ्र ही उनसे मशरूम उगाने की बिधि सीख लिया। 19 वीं शताब्दी के अंत तक दो फ्रांसिसी मशरूम वैज्ञानिक मेटरोकोट व कॉन्टेन्टाइन(1894 ई) में शोध कार्य करके मशरूम संवर्धन में आने वाली बाधाओं को दूर किया। उन्होंने कई रोगों जैसे – ला मोल माइक व गोना पेरनी सियोसध्द नामक रोग पर नियंत्रित करने के लिए गंधक के धुंए का प्रयोग किया। उन्होंने ही सबसे पहले मशरूम के बीजाणुओं के अण्डे बनाये जिससे वैज्ञानिक तरीके से मशरूम की खेती को बढ़ावा मिला।
सन् 1902ई में मिस फरगूसन ऑफ क्रोन ने विस्तार पूर्वक समझाया। सन् 1905ई में अमेरिकी वैज्ञानिक बी. एम. दुग्गङ ने कोशिका प्रजनन विधि (Pure cell suspension culture) का आविष्कार किया जिससे मशरूम जगत को एक नया आयाम मिला।
मशरूम पैदा करने वाले इच्छुकों के बीच यह आविष्कार खलबली मचा दिया क्योंकि इससे किसी भी विशेष प्रजाति के मशरूम के विशुद्ध अण्डे आसानी से तैयार किये जा सकते थे। इस कार्य ने विकसित राष्ट्रों में मशरूम उत्पादन को एक उद्योग का दर्जा दिला दिया।
सन् 1918ई में अमेरिका के lambert ने कॉच के बोतलों में मशरूम के कल्चर से शुद्ध स्पान तैयार किया, इस विधि में पहले प्रयोगशाला में अण्डे विकसित किया गया बाद में उसे घोङो की लीद से बनाए गए एवं निष्किट किए हुए मिडियम को कॉच की पात्रों में भरकर उसमें अण्डे विकसित कर स्पान बनाया गया, इस तरह पहली बार Lambert ने स्पान बेचना शुरू कर दिया।
बीसवीं सदी के चौथे दशक में मशरूम उगाने के लिए उपयुक्त एक हरित पौधशाला (Green House ) का निर्माण किया गया। जिसमें आर्द्रता, तापमान व उचित वायुगमन का कृत्रिम रूप से किया गया इस तरह मशरूम की व्यासायिक खेती को अधिक बढ़ावा मिला।
फ्रांसीसी किसान मशरूम के कम्पोस्ट को दानेदार बनाने के लिए जिप्सम का उपयोग बखूबी जानते थे।
पिगर 1936ई में कम्पोस्ट बनाने मे जिप्सम को अतिआवश्यक माना क्योंकि जिप्सम कवकजाल को तेजी से वृद्धि के लिए उत्तेजित करने में सहायक होता है।
सिन्डेन 1932ई में डिम्बन बनाने में कणों का उपयोग बताया और इस तकनीक को पेटेंट भी करवा लिया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका के कृषि विभाग ने यह प्रचारित किया कि मशरूम पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य है।
सदी के मध्य तक ईग्लैण्ड और आयरलैंड में मशरूम उत्पादकों का संघ बन गया था। और इसने मशरूम में आने वाले समस्याओं के समाधान हेतु शोधकार्य करने के लिए “नेशनल फार्मर्स यूनियन "की एक विशिष्ट शाखा स्थापित की गई। उसके बाद प्रकाशकों का एक मिडलैंड ग्रुप (Midland Group) स्थापित किया गया जिसने मशरूम कृषि को बढ़ावा देने के लिए उच्च कोटि के पुस्तकों और पत्रिकाओं का प्रकाशन किया।
उसके बाद के वर्षों में पॉलीथीन के थैलियों में मशरूम उगाने की बिधि का आविष्कार हुआ जिससे घरेलू स्तर पर मशरूम उत्पादकों के लिए मशरूम उगाना काफी आसान हो गया।
बेनलेट ने मशरूम में होने वाले बिमारियों के बारे में बिस्तर से समझाया और रोगों के रोकथाम की जानकारी दी।
इसके साथ ही मशरूम संवर्धन का बिस्तार तेजी से हो रहा है।
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